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इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद जी के गुरू श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज का आविर्भाव (जन्मदिवस)दिवस धूम-धाम से मनाया गया

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संवाददाता। लखनऊ 
इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद जी के गुरू श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज का आविर्भाव (जन्मदिवस)दिवस धूम-धाम से मनाया गया
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज के आविर्भाव दिवस पर कथा में उपाध्यक्ष श्रीमान भोक्ता राम प्रभु जी ने बताया कि इनका जन्म पुरी उड़ीसा मे 6 फ़रवरी 1874 क़ो केदारनाथ श्रीमान भक्ति विनोद ठकुर जी के घर हुआ था l श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज जब 06 माह के थे तब भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के दौरान उनका रथ इनके घर के सामने आकर रुक गया और 03 दिन तक वही रुका रहा, जब इनकी माताजी इन्हे भगवान के सामने लेकर आयीं तब भगवान के गले की माला इनके ऊपर गिर गयी यह देख कर इनके पिता जान गये कि भगवान ने इस बालाक को कृष्ण भावनामृत का प्रचार करने के लिए भेजा है l

 श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धि के थे, इन्होने 07 वर्ष की अवस्था मे सम्पूर्ण श्रीमद भगवतगीता कंठस्थ कर ली थी और 08 वर्ष की अवस्था मे उन्होंने इस पर प्रवचन देना शुरू कर दिया था, तरुणावस्था मे इनकी श्रद्धा क़ो देखते हुए आपके पिताजी एवं महान आचार्य ने अपने शिष्य गौर किशोर दास बाबा जी महाराज के पास दीक्षा के लिए भेजा और कठिन परीक्षाओं के बाद उन्हें दीक्षा प्रदान की, जो उनके एक मात्र शिष्य हैं l
     
 श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज ने कृष्ण भावनामृत के प्रचार के लिए सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और 64 गौड़ीय मठ मंदिरों की स्थापना की साथ ही साथ वृहद मृदंग के नाम से मद्रास, अहमदाबाद एवं कृष्ण नगर में प्रिंटिंग प्रेस भी स्थापित की, जिसके द्वारा इन्होने गौरांग महाप्रभु के सन्देश क़ो किताबों, पत्रिकाओं एवं अखबार के माध्यम से प्रचारित किया l

  श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज ने अपने पिता द्वारा लिखित पुस्तकों के साथ-साथ श्रीमद भगवतगीता, श्रीमद भागवतम, चैतन्य भागवत, चैतन्य मंगल एवं उनके प्रिय चैतन्य चरितामृत क़ो भी प्रकाशित किया,साथ ही आप अंग्रेजी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे, इनके पास शब्दों का ऐसा संकलन था जिसे समझने के लिए विदेशी भक्तों क़ो भी डिक्शनरी का प्रयोग करना पड़ता था l इनके निर्भीक प्रचार के कारण इन्हे सिंह गुरू कहा जाता है l एक बार श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज ने भगवान क़ो बिना भोग लगाए आम ग्रहण कर लिया था, जिसका एहसास होते ही उन्होंने संकल्प लिया कि अब जीवन मे कभी बिना भगवान क़ो भोग लगाए कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगा और आजीवन उसका पालन किया l

  श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज असाधारण प्रचारक थे, इनके असाधारण प्रचार एवं सफलता के अतिरिक्त भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद जैसा शिष्य भी इन्ही का योगदान है, जिन्होने अंतरष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) की स्थापना की और अपने गुरू श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज के निर्देशानुसार सम्पूर्ण विश्व मे कृष्ण भावनामृत का प्रचार-प्रसार किया l

 उल्लेखनीय है कि श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज जी की 150वीं जन्म शताब्दी वर्ष पर उनके सम्मानार्थ भारत के यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने रूo 500 का डाक टिकट एवं रूo 150/- का सिक्का भारत मंडपम मे अभी हाल मे ही जारी किया l

    कार्यक्रम के समापन पर अपरान्ह तक उपवास के उपरान्त सभी भक्तों के लिए भोजन प्रसादम(भंडारा) संपन्न हुआ।

अंत मे उपाध्यक्ष श्रीमान भोक्ता राम प्रभुजी ने सभी भक्तो से श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी महाराज के जीवन एवं आचरण से शिक्षा लेते हुए श्रीमद्भगवतगीता यथारूप स्वाध्याय, हरिनाम जप एवं श्री श्री राधारमण बिहारी जी की अधिक से अधिक प्रेम भाव से सेवा करने को कहा जिससे उनकी कृपा सबको प्राप्त हो।

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