लखनऊ : संवाददाता
लूडो में ‘दिल’ हारने वाली सीमा जैसी ‘प्रेम कहानी’ इकरा की भी थी
विश्व स्तर पर सबसे लोकप्रिय बोर्ड गेम लूडो का समय के साथ अपना ‘मिजाज’ बदलता जा रहा है.कभी यह बच्चों का खेल हुआ करता था तो अब लूडो को जवां दिलों की धड़कन बनते भी देखा जाता है. लूडो एक बौद्धिक खेल भी है. इसकी प्रसांगिकता को देखते हुए अब कई स्कूल-कालेजों में भी बच्चों का बौद्धिक विकास करने के लिए लूडो और शतरंज जैसे परम्परागत खेलों का आयोजन होने लगा है. इसी तरह से कल तो जो महिलाएं किटी पार्टी में ताश खेला करती थीं,अब वह भी लूडो खेलने लगी हैं. लूडो बुजुर्गो का टाइम पास का जरिया भी बनता जा रहा है. बहरहाल,आज की तारीख मंे एक बार फिर बच्चों का पुराना खेल लूडो युवा दिलों की धड़कन बनने के कारण सुर्खियां बटोर रहा है.सचिन के प्यार में पागल पाकिस्तान से आई सीमा हैदर का मामला भले आज हर तरफ चर्चा में है,लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.लूडो अक्सर दो दिलों को जोड़ने का जरिया बनता रहता है. हर बार ‘पात्र’ वही यानी प्रमी जोड़े होते हैं बस ‘नाम’ बदल जाते हैं. कभी इकरा या सीमा तो कभी रिया लूडो में दिल हार जाती है.ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश राजधानी लखनऊ में भी समाने आया है. जहां के काकोरी थाना क्षेत्र में ऑनलाइन लूडो खेलने के दौरान एक लड़के को लड़की से प्यार हो गया और फिर दोनों ने एक दूसरे से शादी कर ली.इस युवा जोड़े को भी लूडो ने मिलवाया था. दरअसल, लूडो खेलते-खेलते दोनों युवा एक-दूसरे पर दिल दे बैठे थे. इसके बाद इस युवा जोड़ी रिया-रविराज ने शादी भी कर ली और आज खुशहाल जीवन बिता रहे हैं.ऐसे ही करीब पांच माह पूर्व भी सरहद पार से एक युवती इकरा उत्तर प्रदेश में रहने वाले अपने प्रेमी से मिलने नेपाल के रास्ते भारत पहुंची थी. इकरा पाकिस्तान के हैदराबाद की रहने वाली थी. 19 साल की इकरा को लूडो खेलने का शौक था। ऑनलाइन लूडो खेलते-खेलते उसे उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह से प्यार हो गया। प्यार बढ़ता गया और इकरा ने भारत में अपने प्यार से मिलने के लिए वीजा अप्लाई कर दिया,लेकिन किसी कारणवश वीजा रिजेक्ट हो गया। इसके बाद भी इकरा और मुलायम रुके नहीं। इकरा ने नेपाल के रास्ते भारत आने का फैसला किया। यहां आकर उसने शादी कर ली। उसने हिंदू नाम रख लिया था,लेकिन उसे नमाज पढ़ते देख पड़ोसी को शक हुआ तो पूरी पोल खुल गई.बाद में पाकिस्तानी लड़की इकरा जिवानी को वापस उसके वतन भेज दिया गया. इकरा को पहले अमृतसर के अटारी बॉर्डर पर लाया गया,जहां से उसे पाक रेंजर्स के हवाले कर दिया गया. इसी प्रकार से प्रतापगढ़ में लूडो खेलते हुए एक किरायेदार की पत्नी अपने मकान मालिक को दिल दे बैठी थी. आज लूडो भले ही अन्य वजह से चर्चा में हो,लेकिन इतिहास गवाह है कि लूडो के अलावा कोई अन्य बोर्ड गेम समय की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है, हजारों वर्षों तक अस्तित्व में रहने के बाद भी लूडो अत्याधिक लोकप्रिय और प्रासंगिक है.बोर्ड गेम के प्रेमी विभिन्न माध्यमों से खेल का आनंद लेते हैं। कुछ लोग लूडो मैच खेलने के लिए भौतिक लूडो बोर्ड और संबंधित उपकरणों का उपयोग करने के पारंपरिक तरीके को पसंद करते हैं क्योंकि यह उन्हें एक उदासीन अनुभव प्रदान करता है। दूसरी ओर, अधिकांश लूडो प्रेमी ऑनलाइन लूडो गेम्स का उपयोग करना पसंद करते हैं जो बेहद सुलभ हैं और खिलाड़ियों को रोमांचक पुरस्कार भी प्रदान करता हैं। लूडो का प्रतिदिन लाखों लोग आनंद लेते हैं, लेकिन सदाबहार बोर्ड गेम लूडो के दिलचस्प इतिहास के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लूडो का खेल कैसे अस्तित्व में आया, इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं उपलब्ध हैं। सबसे विश्वसनीय यह है कि लोकप्रिय लूडो भारत में छठी शताब्दी के दौरान अस्तित्व में आया था। इसकी उत्पत्ति के समय, खेल को ‘पच्चीसी’ कहा जाता था। जैसे ही लूडो का इजाद हुआ तुरंत ही यह आमजन और शासक वर्गों के बीच एक लोकप्रिय हो गया। खेल से प्यार करने वाले राजा का एक अच्छा उदाहरण अकबर है। महान मुगल बादशाह अपने दरबारी सदस्यों और आगंतुकों के साथ पचीसी मैचों में शामिल होना पसंद करते थे। कहा जाता है कि वह लोगों के चरित्रों को आंकने के लिए खेल का इस्तेमाल करता था। उन्होंने लाइव ऑडियंस को गेम देखने के लिए भी तैयार किया।माना जाता है कि खेल का सबसे पहला प्रमाण महान महाकाव्य महाभारत में इसका उल्लेख है। सबसे लंबी महाकाव्य कविता में चित्रित पासा खेल को चोपत कहा जाता था, जिसे पासा की भिन्नता का खेल माना जाता था। यह युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच खेला गया था। महाराष्ट्र में स्थित लोकप्रिय एलोरा गुफाओं में पुरातत्वविदों और इतिहासकारों द्वारा लाखों लोगों को पसंद किए जाने वाले प्राचीन बोर्ड गेम का एक और सबूत खोजा गया था। गुफा में, खेल के तत्वों को चित्रों के रूप में दर्शाया गया है। इस खोज ने अत्यधिक विश्वास वाले सिद्धांत को और मजबूत किया कि लूडो का मूल भारतीय है। लूडो का आधिकारिक तौर पर पेटेंट भी हो गया है. लूडो के जिस खेल को आज दुनिया जानती है उसका आधिकारिक तौर पर 127 साल पहले यानी 1896 में पेटेंट कराया गया था। अल्फ्रेड कोलियर, एक अंग्रेज व्यक्ति था, जिसने इंग्लैंड में बोर्ड गेम का पेटेंट कराया था। जिस समय खेल का पेटेंट कराया गया था, उस समय कई नियमों में बदलाव किया गया था। शुरुआत के लिए, आयताकार पासे को घन के आकार के पासे से बदल दिया गया। इसके अलावा, पासे को हाथ से फेंकने के नियम को पासा कप का उपयोग करके फेंकने में बदल दिया गया। खिलाड़ियों के धोखा देने की संभावना को कम करने के लिए यह बदलाव पेश किया गया था। लूडो के विभिन्न स्वरूपों की बात की जाए तो अपने इतिहास के लम्बे सफर में वर्षों में, लूडो ने दुनिया के कई हिस्सों की यात्रा की और खुद को एक लोकप्रिय बोर्ड गेम के रूप में स्थापित किया। इसके मूल संस्करण के अलावा, गेम में कई भिन्नताएं हैं, जिनमें से प्रत्येक में थोड़े-थोड़े नियमों को शामिल किया गया है। उनमें से कुछ यहां हैं. सबसे पहले बात न्बामते गेम की जो लूडो बोर्ड गेम का एक प्रकार है और यूनाइटेड किंगडम में अत्याधिक लोकप्रिय है। लूडो के विपरीत इसमें खिलाड़ी एक पासा का उपयोग करते हैं, न्बामते को खिलाड़ियों को दो पासे का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार च्ंतुनमे लूडो का कोलंबियाई रूपांतर है। च्ंतुनमे को ‘रैंडम थिंकिंग’ बोर्ड गेम के रूप में भी जाना जाता है। फिया लूडो का एक और लोकप्रिय रूप है जो स्वीडन में बेहद लोकप्रिय है। वेरिएंट के सब-वेरिएंट को फिया-स्पी और फिया मेड नफ कहा जाता है,इसी तरह से इइल मिट वेइल भी लूडो बोर्ड गेम का एक प्रकार है जो स्विस लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर खेला जाता है।
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