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श्री रामार्चन महायज्ञ में बेदी पूजन के साथ माता सती व शिव विवाह की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रोता।

 संवाददाता

लखनऊ  गोमती तट स्थित खाटू श्याम प्रभु के दरबार मे चल रहे रामार्चन महायज्ञ एवं श्री राम कथा में दूसरे दिन योग्य पंडितों द्वारा  मंत्रोचार के साथ शनिवार को वेदी पूजन किया गया। जिसके बाद महायज्ञ प्रारंभ हुआ। महायज्ञ के दौरान नगर विकास अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा, व श्री राम तीर्थ क्षेत्र अयोध्या उत्तराधिकारी कमल नयन दास जी महाराज के साथ जानकी दास जी उपस्थित रहे। इस अवसर पर भाजपा युवामोर्चा पवनेश कुमार पांडेय, पूर्व अध्यक्ष लविवि राजेश मिश्रा, व आयोजक डॉ0 एसआर शर्मा ने तमाम भक्तों के साथ महायज्ञ में आहुति डाल कर पूजन अर्चन किया। शाम के वक्त स्वामी अमरेश्वरा नंद जी महाराज माता पर्वती के सती होने की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि पिता के कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर भी सती मौन रहीं। वे उस यज्ञमंडल में गईं जहां सभी देवता और ॠषि-मुनि बैठे थे तथा यज्ञकुण्ड में धू-धू करती जलती हुई अग्नि में आहुतियां डाली जा रही थीं। सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, किंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा। वे भगवान शिव का भाग न देखकर अपने पिता से बोलीं पितृश्रेष्ठ! यज्ञ में तो सबके भाग दिखाई पड़ रहे हैं किंतु कैलाशपति का भाग नहीं हैं। आपने उनका भाग क्यों नहीं रखा? दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया मैं तुम्हारे पति शिव को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला धारण करने वाला हैं। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। उसे कौन भाग देगा? सती के नेत्र लाल हो उठे। उनका मुखमंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोदिप्त हो उठा। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा ओह! मैं इन शब्दों को कैसे सुन रहीं हूं मुझे धिक्कार हैं। देवताओ तुम्हें भी धिक्कार हैं! तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता हैं। जो नारी अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनती हैं उसे नरक में जाना पड़ता हैं। पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया हैं। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा। बाद में सती के विरह में शंकरजी की दयनीय दशा हो गई। वे हर पल सती का ही ध्यान करते रहते और उन्हीं की चर्चा में व्यस्त रहते। उधर सती ने भी शरीर का त्याग करते समय संकल्प किया था कि मैं राजा हिमालय के यहां जन्म लेकर शंकरजी की अर्द्धांगिनी बनूं। जिसके बाद बड़े ही सजीव तरीके से स्वामीजी के महादेव के विवाह की कथा का वर्णन किया। श्रोता कथा सुन भाव विभोर हो गए। 
शनिवार को स्वामी अमरेश्वरा नंद जी महाराज का जन्मदिन होने पर भक्तों ने उन्हें बधाई दी।

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